इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश- बालिग महिला को अपनी पसंद और शर्तों पर पति के साथ रहने का अधिकार


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि बालिग महिला को अपनी पसंद और शर्तों के आधार पर पति के साथ बिना किसी बाधा के जीने का अधिकार है। कोर्ट ने पति-पत्नी दोनों की सुरक्षा करने का आदेश दिया है। पति के खिलाफ अपहरण के आरोप में दर्ज एफआइआर को भी कोर्ट ने रद कर दिया है। उनके खिलाफ 27 सितंबर 2020 को एटा कोतवाली देहात पुलिस स्टेशन में एफआइआर दर्ज करायी गयी थी।

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी व न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने शिखा व अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। कोर्ट ने सीजेएम एटा और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के रवैये पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि इनके कार्य से कानूनी उपबंधों को समझने की क्षमता की कमी दिखायी दी।

हाई कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम-2015 की धारा-95 से स्पष्ट है कि यदि स्कूल का जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध है तो अन्य साक्ष्य द्वितीय माने जाएंगे। स्कूल प्रमाणपत्र में याची की जन्म तारीख चार अक्टूबर 1999 दर्ज है। ऐसे में वह बालिग है। इसके बावजूद सीजेएम एटा ने कानूनी उपबंधों के विपरीत याची की अभिरक्षा उसके माता-पिता को सौंप दी।

मामले के अनुसार एटा की शिखा ने सलमान उर्फ करन से अंतर धार्मिक विवाह किया है। लड़की के परिवार वालों ने अपहरण के आरोप में एफआइआर दर्ज करायी। पुलिस ने लड़की को कोर्ट में पेश किया। सीजेएम एटा ने पहले याची को बाल कल्याण समिति भेज दिया था। उसकी रिपोर्ट के बाद मजिस्ट्रेट ने उसके माता-पिता को सुपुर्द कर दिया।

याची के पति सलमान उर्फ करन ने इस अवैध निरुद्धि से मुक्ति दिलाने के लिए यह याचिका दायर की। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को कानून के विपरीत करार दिया और कोर्ट में पेश याची ने कहा कि वह बालिग है, उसने सलमान से शादी की है और अपने पति के साथ रहना चाहती है जिस पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है।

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जागरण
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